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“योग: शारीरिक, मानसिक व अनुशासनात्मक जीवनशैली का दैनिक संगम एवम् सतत शारीरिक क्रियाओं के निरंतर अभ्यास की साधना”

डॉ प्रमोद कुमार

योग एक ऐसी प्राचीन भारतीय परंपरा है, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक और आत्मिक संतुलन को भी सुदृढ़ करती है। यह केवल आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवनशैली है जिसमें व्यक्ति का शरीर, मन और आत्मा एक संतुलित और अनुशासित मार्ग पर अग्रसर होते हैं। “योग: शारीरिक, मानसिक व अनुशासनात्मक जीवनशैली का दैनिक संगम एवम् सतत शारीरिक क्रियाओं के निरंतर अभ्यास की साधना” यह कथन इस विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है। योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन-दर्शन है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा का संतुलन स्थापित करने की चेष्टा की जाती है। आधुनिक जीवनशैली में जहां तनाव, अव्यवस्थित खानपान, मानसिक बेचैनी और आत्मिक विखंडन आम हो गया है, योग एक मार्गदर्शक के रूप में सामने आता है जो अनुशासित जीवनशैली, मानसिक शांति और शारीरिक सक्रियता के त्रिविध संगम को संभव बनाता है। यह लेख “योग: शारीरिक, मानसिक व अनुशासनात्मक जीवनशैली का दैनिक संगम एवम् सतत शारीरिक क्रियाओं के निरंतर अभ्यास की साधना” विषय पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालता है।
1. योग: परिचय व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1.1 योग का शाब्दिक और दार्शनिक अर्थ

‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज’ धातु से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है – ‘जोड़ना’। योग का उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से जोड़ना, शरीर को मन से जोड़ना, और अंततः जीवन को अनुशासन के साथ एक समग्र अवस्था में लाना है। योग का उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से, शरीर का मन से, और व्यक्ति का समाज व प्रकृति से जुड़ाव है। पतंजलि के योगसूत्र में कहा गया है – “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात् योग चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करने का उपाय है। आधुनिक युग में इसे केवल व्यायाम या फिटनेस के रूप में देखा जाता है, किंतु वास्तव में यह जीवन की एक समग्र शैली है, जो व्यक्ति को अनुशासन, संयम और निरंतर अभ्यास के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है।
1.2 योग का ऐतिहासिक विकास
योग का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना माना जाता है। वेदों, उपनिषदों, भगवद्गीता, पतंजलि के योगसूत्रों में इसका उल्लेख मिलता है। योग शारीरिक क्रियाओं की निरंतर साधना। योग के शारीरिक पक्ष में आसन, प्राणायाम, बंध और मुद्रा जैसे विभिन्न शारीरिक अभ्यास शामिल होते हैं। ये क्रियाएं शरीर को लचीला, संतुलित और ऊर्जावान बनाती हैं। नियमित योगाभ्यास से न केवल रोगों से बचाव होता है, बल्कि शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। महर्षि पतंजलि ने योग को व्यवस्थित रूप में सूत्रबद्ध कर आठ अंगों (अष्टांग योग) में विभाजित किया।
1.3 योग के विभिन्न प्रकार
हठयोग: शारीरिक संतुलन एवं नियंत्रण पर केंद्रित।
राजयोग: मानसिक एकाग्रता व आत्मबोध की साधना।
ज्ञानयोग: आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना।
भक्तियोग: परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण।
कर्मयोग: निष्काम कर्मों के माध्यम से मुक्ति।
2. शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग
2.1 योगासन और शारीरिक संतुलन

नित्य अभ्यास द्वारा शरीर में उर्जा प्रवाह बना रहता है। यह अभ्यास धीरे-धीरे जीवन का हिस्सा बन जाता है – एक ऐसी साधना, जो शरीर को व्याधियों से मुक्त रखने के साथ-साथ मन को भी शांत और एकाग्र बनाए रखती है। यह नियमितता ही योग की आत्मा है, जिसे ‘अभ्यास’ कहा गया है। योगासनों के अभ्यास से शरीर की आकृति, लचीलापन, शक्ति और संतुलन में सुधार होता है। उदाहरण:
ताड़ासन: रीढ़ सीधी, शरीर संतुलित।
भुजंगासन: पीठ दर्द में राहत।
वज्रासन: पाचन में सुधार।
2.2 श्वास नियंत्रण – प्राणायाम
प्राणायाम जीवन ऊर्जा का नियंत्रण है। यह श्वसन प्रणाली को मजबूत करता है और आंतरिक शुद्धि लाता है।
अनुलोम-विलोम: मानसिक शांति।
कपालभाति: पेट की चर्बी कम करता है।
भ्रामरी: मस्तिष्क को शांत करता है।
2.3 योग और रोग प्रतिरोधक क्षमता
नियमित योगाभ्यास से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे शरीर संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में सक्षम होता है।
3. मानसिक स्वास्थ्य और योग
मानसिक संतुलन और योग आज की भागदौड़ भरी दुनिया में तनाव, चिंता और अवसाद आम समस्याएं बन चुकी हैं। योग का मानसिक पक्ष – ध्यान (ध्यानयोग), धारणा और प्राणायाम – व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। सांसों के माध्यम से मन को नियंत्रित करना, विचारों की भीड़ को शांत करना और आंतरिक चेतना को जागृत करना – यही योग की मानसिक साधना है।
3.1 तनाव और चिंता में योग की भूमिका
ध्यान (Meditation) और प्राणायाम तनाव को कम कर मानसिक स्थिरता प्रदान करते हैं। ध्यान द्वारा व्यक्ति वर्तमान क्षण में जीना सीखता है। “ध्यानं निरंतर अभ्यासेन सिद्ध्यति” – यह कथन दर्शाता है कि ध्यान भी निरंतरता की मांग करता है। योग में यह प्रक्रिया मानसिक अनुशासन को जन्म देती है, जिससे व्यक्ति आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण कर पाता है। मानसिक थकावट और अवसाद के इलाज में भी योग सहायक है।
3.2 एकाग्रता व स्मरण शक्ति में वृद्धि
त्राटक और ध्यान से मन एकाग्र होता है। विद्यार्थी, शोधार्थी और पेशेवरों के लिए योग स्मरण शक्ति बढ़ाने का माध्यम बन सकता है।
3.3 नींद संबंधित समस्याओं में योग
योग निद्रा (Yoga Nidra) और श्वसन क्रियाएं अनिद्रा को दूर करती हैं। मानसिक सुकून से शरीर की थकान मिटती है।
4. अनुशासनात्मक जीवनशैली में योग का योगदान
अनुशासनात्मक जीवनशैली का आधार योग केवल कुछ क्षणों का अभ्यास नहीं है, यह जीवन जीने की एक शैली है। योग व्यक्ति को अनुशासन की ओर प्रेरित करता है। ब्रह्ममुहूर्त में जागना, शुद्ध और सात्विक भोजन करना, संयमित जीवन जीना, नियमित अभ्यास करना, संयमित वाणी और आचरण ये सब योग की अनुशासनात्मक शैली के अंग हैं। योगशास्त्रों में ‘यम और नियम’ को अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे यम और शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान जैसे नियम व्यक्ति के जीवन को संयमित बनाते हैं। यह संयम ही योग की आत्मा है, जो व्यक्ति को ऊंचे नैतिक और आध्यात्मिक धरातल पर ले जाता है।
4.1 दिनचर्या में संयम और संतुलन
योग नियमितता और समयबद्धता सिखाता है। नींद, भोजन, कार्य और विश्राम में संतुलन स्थापित करता है।
4.2 आत्मनियंत्रण और चरित्र निर्माण
यम और नियम आत्मनियंत्रण का अभ्यास कराते हैं। अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अस्तेय। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान।
4.3 संयमित जीवन के लाभ
शराब, धूम्रपान, अधिक भोजन जैसी आदतों से दूर करता है। संयम से जीवन अधिक सरल, शुद्ध और फलदायक बनता है।
5. योग: दैनिक साधना और निरंतर अभ्यास की महत्ता
शरीर, मन और आत्मा का समन्वय योग का उद्देश्य केवल रोगमुक्त शरीर नहीं, बल्कि आत्ममुक्त जीवन है। यह शरीर, मन और आत्मा के बीच समन्वय स्थापित करता है। जब शरीर स्वस्थ होता है, मन शांत होता है और आत्मा जागरूक होती है, तभी व्यक्ति अपने जीवन का सही मार्ग पहचान सकता है। योग की यह समग्र दृष्टि आज के भौतिकतावादी और तनावपूर्ण जीवन में नयी दिशा और ऊर्जा देती है। यह हमें बताता है कि हम केवल शरीर नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना हैं जिसे जागृत करने के लिए योग एक साधन है।
5.1 अभ्यास की सततता
योग एक दिन का कार्य नहीं, बल्कि जीवनभर की साधना है। ‘अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते’ – गीता।
5.2 आरंभिक कठिनाइयों पर विजय
प्रारंभ में शरीर में जड़ता, समय की कमी, ध्यान भटकाव की समस्याएं आती हैं। धैर्य और निरंतर अभ्यास से यह सहज होता है।
5.3 समय और स्थान का चयन
प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त सर्वोत्तम समय। शांत, स्वच्छ और वायुमंडलीय स्थान चुनना चाहिए।
6. आधुनिक जीवन में योग की प्रासंगिकता
योग का सामाजिक और वैश्विक प्रभाव योग केवल व्यक्तिगत साधना नहीं है, इसका प्रभाव सामाजिक और वैश्विक स्तर पर भी दिखाई देता है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) को विश्व के अनेक देशों द्वारा मनाना इस बात का प्रमाण है कि योग केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की धरोहर बन चुका है। योग तनाव, संघर्ष, अशांति और कटुता को दूर करने में एक शांति दूत के रूप में कार्य करता है। यह सहिष्णुता, शांति और भाईचारे की भावना को पुष्ट करता है।
6.1 व्यस्तता और तनाव भरे जीवन में समाधान
कार्यक्षेत्र, घर, शिक्षा, तकनीकी बोझ से उपजे तनाव को योग दूर करता है।
पांच से दस मिनट का भी नियमित अभ्यास हितकारी व लाभकारी है।
6.2 बच्चों, युवाओं और वृद्धों के लिए योग
बच्चों के लिए शारीरिक विकास और मनोबल। युवाओं के लिए एकाग्रता, आत्म-नियंत्रण, और दृष्टिकोण निर्माण। वृद्धों के लिए स्वास्थ्य बनाए रखने का सहज साधन।
6.3 ऑफिस योग व कॉर्पोरेट वेलनेस
कंपनियों में योग कार्यक्रम कर्मचारियों की उत्पादकता, संतुलन और मानसिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं।
7. योग और भारतीय संस्कृति
योग एक समर्पणमयी साधना है। योग में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है निरंतरता और समर्पण। यह कोई एक-दो दिन की प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवनभर चलने वाली साधना है। इसमें व्यक्ति को धैर्य, विश्वास और अभ्यास के साथ बढ़ते रहना होता है। जैसा कि श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है “योगः कर्मसु कौशलम्”, अर्थात् योग जीवन के हर कर्म में कुशलता और संतुलन लाता है।
7.1 योग: भारत की प्राचीन धरोहर
भारत ने विश्व को योग का उपहार दिया है। योग का समावेश भारतीय जीवन-दर्शन, आयुर्वेद, नृत्य, संगीत और स्थापत्य में भी हुआ है।
7.2 अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। यह भारत की सांस्कृतिक वैश्विक पहचान को दर्शाता है।
8. योग और विज्ञान
8.1 वैज्ञानिक शोध और प्रमाण

अनेक अध्ययनों ने योग के मानसिक व शारीरिक लाभों की पुष्टि की है। न्यूरोलॉजिकल और फिजियोलॉजिकल सुधार में योग उपयोगी सिद्ध हुआ है।
8.2 चिकित्सा क्षेत्र में योग की भूमिका
मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मोटापा, अवसाद आदि के नियंत्रण में योग सहायक है। चिकित्सा विज्ञान अब योग चिकित्सा को सहायक उपचार के रूप में अपना रहा है।
9. योग: केवल आसन नहीं, जीवन का मार्ग
9.1 योग एक पूर्ण जीवनदृष्टि

योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, यह आचार, विचार, व्यवहार, दृष्टिकोण और जीवन के हर पहलू में संतुलन और जागरूकता लाता है।
9.2 योग और अध्यात्म
योग आत्मा और परमात्मा के बीच एक सेतु है। ध्यान और समाधि आत्मसाक्षात्कार की दिशा में प्रयास हैं।
10. निष्कर्ष: योग का जीवन में समावेश
योग आज के यांत्रिक, तनावपूर्ण और असंतुलित जीवन में सच्चा मार्गदर्शक बनकर उभरा है। यह केवल शरीर को स्वस्थ नहीं बनाता, बल्कि मन को शांत और जीवन को अनुशासित करता है। सतत अभ्यास, समर्पण और संयम से योग को दैनिक जीवन में समाहित कर हम न केवल स्वयं को, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी संतुलित, स्वस्थ और उन्नत बना सकते हैं। विचारणीय वाक्य: “योग केवल शरीर की साधना नहीं, यह आत्मा की यात्रा है अनुशासन, साधना और जागरूकता के संगम से जीवन को दिव्यता की ओर ले जाने वाली जीवन पद्धति।” योग एक सार्वकालिक, सार्वभौमिक और सर्वग्राही जीवनशैली है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवन-शैली है जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धता एवं संतुलन को एक सूत्र में बांधती है।
“योग शारीरिक, मानसिक व अनुशासनात्मक जीवनशैली का दैनिक संगम एवम् सतत शारीरिक क्रियाओं के निरंतर अभ्यास की साधना” – यह कथन न केवल योग के वास्तविक स्वरूप को परिभाषित करता है, बल्कि यह आधुनिक जीवन में इसकी प्रासंगिकता को भी दर्शाता है। योग अपनाकर न केवल व्यक्ति स्वयं का विकास कर सकता है, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी संतुलन, स्वास्थ्य और शांति की दिशा में अग्रसर कर सकता है। अतः यह आवश्यक है कि हम योग को केवल एक अभ्यास न मानकर, जीवन की एक दैनिक और सतत साधना के रूप में अपनाएं और इस अद्भुत धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएं।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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