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दिल की सेहत को लगातार बिगाड़ रहा है होमोसिस्टीन

हमारे शरीर में बहुत सारे अमीनो एसिड्स में से एक है होमोसिस्टीन। यह मेटाबोलिज्म की प्रक्रिया से भी जुड़ा है।

टाटा 1एमजी के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया है कि 66 प्रतिशत भारतीयों में होमोसिस्टीन का स्तर निर्धारित मानक से अधिक है। जिन लोगों के रक्त में इसकी मात्रा बढ़ जाती है, उन्हें हार्ट अटैक और स्ट्रोक आने की आशंका अधिक रहती है। दरअसल, इस समस्या से शरीर के संवेदनशील अंगों में रक्त का संचार बाधित होता है।

होमोसिस्टीन रक्त में घुला एक ऐसा विषाक्त है जो दिल की सेहत को लगातार बिगाड़ रहा है। भारतीयों में बढ़ती इस समस्या के पीछे कुछ सामान्य कारण ही हैं जिसे हम सावधानी बरत कर दूर कर सकते हैं।

होमोसिस्टीन का बढ़ा हुआ स्तर व्यक्ति के शरीर में कई तरह की परेशानियां बढ़ा सकता है। यह धमनियों की दीवार के लिए विषाक्त पदार्थ की तरह है, जो सीधे तौर पर उन्हें क्षति पहुंचाता है। धमनियों में रक्त का थक्का बनने से खून का प्रवाह बाधित होता है। इसे थ्रंबोसिस कहा जाता है। हृदय की नसों में रुकावट होने से हृदयाघात की आशंका रहती है। यदि यह अवरोध मस्तिष्क की धमनियों को क्षतिग्रस्त करता है, तो ब्रेन स्ट्रोक यानी मस्तिष्क आघात की आशंका होती है। इसके अलावा, किसी वजह से हड्डी टूटने के बाद पीड़ित जब काफी समय तक लेटे रहते हैं, तो इससे उनके पैरों में भी क्लॉट यानी थक्का बनने लगता है। यह फेफड़ों के लिए भी नुकसानदायक होता है।

जिन लोगों में होमोसिस्टीन का स्तर बढ़ा हुआ होता है, उनमें विटामिन बी12 (कोबालामिन) और बी9 यानी फोलिक एसिड की कमी के कारण ऐसा हो सकता है। अध्ययन में देखा गया है कि यदि मरीज को बी12 और फोलिक एसिड सप्लीमेंट दिया जाता है, तो होमोसिस्टीन का स्तर कम हो जाता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि पहले से हड्डियों की कोई बीमारी, हृदयरोग या मस्तिष्क रोग जैसी कोई बीमारी रही है, तो विटामिन सप्लीमेंट का खास असर नहीं होता है। विटामिन सप्लीमेंट से होमोसिस्टीन कम तो हो जाता है, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं हो सकता कि हार्टअटैक या स्ट्रोक नहीं आयेगा।

हालांकि, जिस रिपोर्ट में 66 प्रतिशत भारतीयों में होमोसिस्टीन के बढ़े स्तर की बात कही गई है, वह चुनिंदा लोगों के निष्कर्ष पर आधारित है। आवश्यक नहीं कि हर किसी को यह समस्या हो। जिन्हें पहले से कोई समस्या होती है, वही इस तरह की जांच कराते हैं। ऐसे में इसका सही-सही आकलन आसान नहीं है। किसी तथ्य को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए व्यापक शोध और सर्वेक्षण की आवश्यकता होती है।

यदि 100 हृदयरोगियों का विश्लेषण करें, तो कम-से-कम 70 ऐसे होंगे, जिनमें पारंपरिक जोखिम मिलेंगे। संभव है कि 30 में अन्य कारण हों। अब प्रश्न है कि उन 30 को हार्टअटैक क्यों हो रहा है? कुछ ऐसे भी जोखिम हैं, जो लोगों को पता नहीं हैं। इनमें कारणों को ढूंढ़ने की जरूरत है। अब पड़ताल से पता चल रहा है कि होमोसिस्टीन, लाइपोप्रोटीन लिटिल का स्तर बढ़ने से भी हृदय संबंधी समस्याएं सामने आने लगी हैं।

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