“सत्यम शिवम् सुंदरम्: सत्य, जीवन और मानवता (करुणा) के सौंदर्य की मानवकेंद्रित उजास की त्रिविध रोशनी — विकसित भारत लक्ष्य-2047 के परिप्रेक्ष्य में”
डॉ प्रमोद कुमार

विकसित भारत लक्ष्य–2047 केवल आर्थिक प्रगति या तकनीकी आत्मनिर्भरता का घोष नहीं, बल्कि एक ऐसे मानव-केंद्रित राष्ट्र का निर्माण है, जो सत्य, कल्याण और करुणा की मूलभूत भारतीय चेतना पर आधारित हो। इस लक्ष्य की प्राप्ति तभी संभव है जब भारत “सत्यम शिवम् सुंदरम्” जैसे समग्र और सनातन सिद्धांत को अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और नीतिगत ढांचे में आत्मसात करे।
“सत्यम” — सत्य, उस मानव की पहचान है जो ईमानदार, नैतिक और आत्मबोधयुक्त है। विकसित भारत में नागरिक चेतना का पहला स्तंभ यही है कि प्रत्येक व्यक्ति सत्यवादी और विवेकपूर्ण हो।
“शिवम्” — जीवन का कल्याणकारी मार्ग है, जहाँ शासन, समाज और व्यक्ति सबका उद्देश्य समता, शांति और सेवा हो। लक्ष्य-2047 की राह में यह सिद्धांत सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और दार्शनिक सहिष्णुता को पोषित करता है।
“सुंदरम्” — मानवता का वह रूप है जो करुणा, संवेदना और सह-अस्तित्व के सौंदर्य में प्रकट होता है। यह सौंदर्य भौतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और नैतिक है, जो एक संवेदनशील राष्ट्र की नींव रखता है।
“सत्यम शिवम् सुंदरम्” — यह त्रिवेणी सूत्र भारतीय चिंतन की एक ऐसी दार्शनिक किरण है, जो न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है, अपितु समग्र मानवता को एक उजासमयी जीवन-दृष्टि प्रदान करता है। यह सूत्र केवल धार्मिक या सांस्कृतिक संकल्पना नहीं है, बल्कि यह जीवन के सत्य, कल्याण और करुणा की त्रिस्तरीय मानव-केंद्रित यात्रा का मार्गदर्शक बनता है। जब इस सूत्र को सत्य = मानव, शिवम् = मानव-जीवन, और सुंदरम् = मानवता (करुणा) के प्रतीकों से जोड़ा जाता है, तब यह महज एक वैदिक अथवा धार्मिक उद्घोषणा नहीं रह जाती, बल्कि एक सार्वभौमिक, सार्वकालिक और समसामयिक मानवतावादी दर्शन में परिवर्तित हो जाती है। आज, जब वैश्विक समाज अलगाववाद, हिंसा, नैतिक पतन और आत्म-केन्द्रित जीवनशैली की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब यह दर्शन एक प्रकाशपुंज की भांति मानवता को फिर से जोड़ने, सजग करने और संवेदित करने का माध्यम बन सकता है।
अतः लक्ष्य–2047 की परिकल्पना तभी सार्थक हो सकती है जब भारत का निर्माण “सत्यम शिवम् सुंदरम्” के त्रिवेणी सिद्धांत पर आधारित नव-मानवतावादी चेतना से हो — जहाँ हर नागरिक न केवल उत्पादक, बल्कि नैतिक, संवेदनशील और कल्याणकारी भी हो। यही है विकसित भारत की आत्मा।
2. ‘सत्यम शिवम् सुंदरम्’ की मूल अवधारणा
यह सूत्र वेदांत, उपनिषद और वैदिक चिंतन की उपज है, जिसकी जड़ें ऋग्वेद से लेकर आधुनिक दर्शन तक फैली हुई हैं। यह सूत्र तीन बुनियादी जीवन मूल्यों को रेखांकित करता है —
सत्यम (सत्य): वह जो है, जो शाश्वत है, जो बदलता नहीं। यह केवल तथ्य नहीं, बल्कि परम अस्तित्व की संकल्पना है।
शिवम् (शुभ/कल्याणकारी): जो सृजनात्मक, सजीव, रचनात्मक और सभी के लिए कल्याणकारी हो।
सुंदरम् (सौंदर्य): सौंदर्य केवल दृश्य नहीं, बल्कि भावात्मक करुणा, संवेदना और नैतिक सौंदर्य का प्रतीक है।
यह सूत्र वेदों, उपनिषदों, योगसूत्रों, बौद्ध, जैन और भक्ति साहित्य में विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होता रहा है। इसकी व्याख्या मानव-केंद्रित संदर्भों में करने से यह न केवल दार्शनिक बल्कि सामाजिक, नैतिक और व्यावहारिक मार्गदर्शक बन जाता है।
3. सत्य (सत्यम): मानव का बोधात्मक और नैतिक आयाम
मानव अस्तित्व की प्रथम शर्त है – सत्य का बोध। यह सत्य केवल बाह्य जगत का नहीं, बल्कि आत्मबोध और आत्मज्ञान का द्योतक है। “सत्यम” का आशय है — ऐसा जीवन जीना जो ईमानदारी, पारदर्शिता, आत्मावलोकन और न्याय पर आधारित हो।
✦ सत्य के रूप में ‘मानव’:
मानव वही है जो अपने भीतर सत्य की खोज करता है।
वह जीवन में झूठ, छल और मिथ्याचार से दूर रहते हुए सत्य के पथ पर चलता है।
यह सत्य आत्मा का, समाज का और सृष्टि के प्रति अपने उत्तरदायित्व का होता है।
✦ आधुनिक संदर्भ में:
आज के समय में जहाँ फेक न्यूज, राजनीतिक झूठ और सामाजिक प्रपंच आम हो गए हैं, वहाँ “सत्यम” का मानवकेंद्रित बोध हमें नैतिक पुनरुद्धार की ओर ले जाता है।
4. शिवम्: मानवजीवन का कल्याणकारी दृष्टिकोण
“शिव” का अर्थ है — कल्याणकारी, अर्थात ऐसा जीवन जो केवल स्वार्थ की नहीं, बल्कि सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के सिद्धांत पर आधारित हो।
✦ शिवम् के रूप में ‘मानवजीवन’:
ऐसा जीवन जिसमें सेवा, सृजन, समर्पण और सौहार्द हो।
व्यक्ति केवल अपने लिए न जिए, बल्कि समाज, पर्यावरण और परिजनों के लिए भी उत्तरदायी हो।
✦ सामाजिक संदर्भ:
शिवम् का तात्पर्य है – दया, सहिष्णुता, सहयोग, स्वास्थ्य, समरसता और सामाजिक न्याय से परिपूर्ण जीवन।
एक ऐसा जीवन जो विकास और कल्याण की दिशा में चले, न कि विध्वंस की।
✦ आज के परिप्रेक्ष्य में:
भौतिकतावादी युग में जब जीवन केवल उपभोग का साधन बन गया है, तब “शिवम्” हमें अर्थपूर्ण, नैतिक और सहभागितामूलक जीवन की ओर लौटने का आह्वान करता है।
5. सुंदरम्: मानवता और करुणा का सौंदर्यबोध
“सुंदरम्” का सौंदर्य केवल शारीरिक या दृश्य नहीं होता, बल्कि वह मानव हृदय की करुणा, सहानुभूति, सृजनशीलता और संवेदनशीलता में निहित होता है।
✦ सुंदरम् के रूप में ‘मानवता’:
जब कोई भूखे को भोजन देता है, पीड़ित को सहारा देता है, तो वह सौंदर्य का सृजन करता है।
सुंदर वह है जो करुणा और प्रेम से परिपूर्ण हो।
✦ करुणा का सौंदर्य:
बौद्ध धर्म में करुणा को बुद्धत्व की शर्त माना गया।
रवींद्रनाथ टैगोर, गांधी, मदर टेरेसा जैसे लोगों का जीवन इस करुणामयी सुंदरता का प्रतीक रहा।
✦ सांस्कृतिक दृष्टिकोण:
भारतीय नाट्यशास्त्र, चित्रकला, संगीत और भक्ति परंपरा “सुंदरम्” को आत्मा के सौंदर्य से जोड़ती है।
6. त्रिवेणी सिद्धांत का मानवकेंद्रित विश्लेषण
सत्यम + शिवम् + सुंदरम् = पूर्ण मानव
यदि मानव सत्य से जुड़ा है, तो वह नैतिक है।
यदि वह शिव के मार्ग पर चलता है, तो उसका जीवन कल्याणकारी है।
यदि उसमें सुंदरता है, तो वह करुणा और संवेदना से परिपूर्ण है।
इस प्रकार यह सूत्र एक समग्र मानव दर्शन की ओर इशारा करता है, जो न तो केवल दार्शनिक है, न केवल नैतिक, बल्कि आचरणात्मक और सामाजिक भी है।
7. भारतीय दर्शन और सत्यम शिवम् सुंदरम् की समन्वयशीलता
✦ उपनिषदों में:
“सत्यमेव जयते” — सत्य की अनंतता।
“शिवोहम” — आत्मा का शिव स्वरूप।
“रूपं रूपं प्रतिरूपं बभूव” — सौंदर्य की अभिव्यक्ति हर रूप में।
✦ भगवद्गीता:
गीता में “नित्य सत्य का ज्ञान”, “कल्याणकारी कर्म” और “भक्तियोग में सौंदर्य” के आदर्श मिलते हैं।
✦ वेदांत:
अद्वैत वेदांत में सत्यम को ब्रह्म, शिवम् को चैतन्य और सुंदरम् को आनंद के रूप में व्याख्यायित किया गया।
8. बौद्ध दर्शन और करुणा का मानववादी विस्तार
बुद्ध ने करुणा को मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति माना। उनके दृष्टिकोण में —
सत्य = दुख और उसके कारण की खोज
शिवम् = अष्टांगिक मार्ग से जीवन को कल्याणकारी बनाना
सुंदरम् = करुणा, मैत्री, उपेक्षा और करुणाशील जीवन
बुद्ध के अनुसार जो मनुष्य इन तीनों के संतुलन में जीता है, वही “बोधिसत्व” है — वह जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सबके लिए जीता है।
9. गांधी, आंबेडकर और विवेकानंद के चिंतन में सत्यम-शिवम्-सुंदरम् की उपस्थिति
✦ महात्मा गांधी:
सत्य = उनका धर्म
शिवम् = अहिंसात्मक जीवन
सुंदरम् = करुणा व समर्पण
✦ डॉ. आंबेडकर:
सत्य = ज्ञान व तर्क
शिवम् = समता, स्वतंत्रता, बंधुता
सुंदरम् = जातिविहीन समाज की करुणा
✦ स्वामी विवेकानंद:
सत्य = आत्मा की खोज
शिवम् = सेवा ही धर्म
सुंदरम् = नारी, दलित, गरीब की रक्षा
10. समकालीन सामाजिक चुनौतियाँ और त्रिवेणी सिद्धांत की प्रासंगिकता
आज का समाज संकटों से घिरा है:
सत्य का हास, झूठ का बोलबाला
जीवन में तनाव, उपभोग और संवेदनहीनता
सौंदर्य का विकृति (शोषण, नग्नता, वस्तुवादी सौंदर्यबोध)
सत्यम शिवम् सुंदरम् इस पथभ्रष्ट युग में:
सत्य की लौ जलाकर चेतना जगाता है
जीवन को सेवा और सहयोग की ओर मोड़ता है
सुंदरता को केवल सौंदर्य प्रसाधन नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा और करुणा से जोड़ता है।
11. मानवतावादी दृष्टिकोण से सत्यम शिवम् सुंदरम् का पुनर्पाठ
अब आवश्यक है इस सूत्र को:
धार्मिक सांचे से बाहर निकालना
दर्शन से व्यावहारिक जीवन में उतारना
व्यक्ति से समाज, समाज से मानवता तक विस्तारित करना
✦ यह पुनर्पाठ हमें सिखाता है:
हर मनुष्य सत्य के द्वारा मूल्यवान है। हर जीवन कल्याण का अधिकारी है।
हर संवेदना और करुणा — सौंदर्य की उच्चतम अवस्था है।
12. नव भारत के निर्माण में इस त्रिविध सिद्धांत की भूमिका
विकसित और समरस भारत का निर्माण केवल भौतिक संसाधनों, तकनीकी प्रगति या आर्थिक योजनाओं से संभव नहीं। भारत की आत्मा में नैतिकता, करुणा और सामूहिक कल्याण की वह शक्ति है, जो उसे ‘विश्वगुरु’ की भूमिका निभाने में सक्षम बनाती है। इस पुनरुत्थान का मार्ग सत्यम, शिवम् और सुंदरम् के त्रिवेणी सिद्धांत से होकर ही जाता है।
✦ 1. सत्य (मानव) की पुनर्स्थापना: नैतिक पुनरुद्धार
नव भारत की बुनियाद उन लोगों पर टिकी है जो सत्य बोलते हैं, सत्य जीते हैं और सत्य के लिए लड़ते हैं।
ईमानदार शासन, न्यायपालिका की निष्पक्षता, शिक्षा में सत्य का बोध — ये तत्व राष्ट्र को भीतर से सशक्त बनाते हैं।
अगर हर नागरिक ‘सत्य का दूत’ बन जाए, तो भ्रष्टाचार, झूठ और सामाजिक असमानता का स्वतः ही अंत हो सकता है।
✦ 2. शिवम् (मानव-जीवन) की पुनर्रचना: समतामूलक समाज की ओर
आज के भारत को ऐसी जीवन-पद्धति की आवश्यकता है जो केवल अमीर-गरीब या जाति-धर्म के आधार पर विभाजन न करे, बल्कि सभी के लिए समता और अवसर प्रदान करे।
आंबेडकर के सामाजिक न्याय सिद्धांत, गांधी की ग्राम-स्वराज की कल्पना, और संत कबीर की मानवता की वाणी सभी ‘शिवम्’ के व्यावहारिक आयाम हैं।
कल्याणकारी राज्य और नागरिक सहयोग से समावेशी विकास संभव है।
✦ 3. सुंदरम् (मानवता) की प्रतिष्ठा: करुणा और सह-अस्तित्व का युग
सुंदर वह है जहाँ सबको जीने का अवसर मिले — न कोई भेदभाव, न हिंसा।
मानवता केवल युद्ध या भुखमरी के समय नहीं, बल्कि दैनिक जीवन में करुणा, संवेदना, सहिष्णुता और समानता से दिखाई देती है।
भारत के पुनर्निर्माण में ऐसे सौंदर्यबोध की आवश्यकता है, जो हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान का अनुभव कराए।
13. उपसंहार: उजास की ओर मानवता की यात्रा
विकसित भारत लक्ष्य–2047 केवल बुनियादी ढांचे, डिजिटल प्रगति या वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने की योजना मात्र नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे भारत की परिकल्पना है, जो नैतिकता, करुणा और कल्याण की धुरी पर घूमता हो। इस व्यापक लक्ष्य को सार्थक रूप देना तभी संभव है, जब हम “सत्यम शिवम् सुंदरम्” जैसे प्राचीन किन्तु कालजयी भारतीय दर्शन को व्यवहारिक जीवन में आत्मसात करें।
“सत्यम शिवम् सुंदरम्” केवल कोई वैदिक श्लोक नहीं, बल्कि यह एक सभ्यता का मूल मंत्र है, जो मनुष्य को आत्मा से जोड़ता है, जीवन को कल्याण से भरता है और समाज को करुणा से सींचता है। जब हम इसे मानवतावादी दृष्टिकोण से देखते हैं — तो यह एक विकसित, समरस और संवेदनशील भारत की कल्पना का औचित्यपूर्ण दर्शन बन जाता है।
“सत्य” के बिना नागरिक चेतना अधूरी है, “शिवम्” के बिना जीवन दिशा-विहीन है, और “सुंदरम्” के बिना समाज संवेदनहीन और कुरूप हो जाता है। विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब नागरिक सत्य के पक्षधर बनें, शासन और समाज शिव (कल्याण) के मार्ग पर चलें, और मानवता सुंदरम् यानी करुणा और सह-अस्तित्व का सौंदर्य बिखेरे। इस त्रिवेणी सिद्धांत को अपनाकर हम ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जो केवल सशक्त नहीं, संवेदनशील हो; केवल आत्मनिर्भर नहीं, आत्मसंपन्न हो; और केवल विकसित नहीं, विकसित मानवीय चेतना का वाहक हो।
सत्य, वह आलोक है जो हमें अंधकार से बाहर निकालता है।
शिव, वह पथ है जो जीवन को नष्ट नहीं, रचता है।
सुंदर, वह अनुभूति है, जिसमें व्यक्ति, समाज और सृष्टि — सब मिलकर सौंदर्य बनाते हैं।
आज जब मानवता विभाजनों, हिंसा, असहिष्णुता और नैतिक विचलनों से जूझ रही है, तब यह त्रिवेणी सिद्धांत पुनः एक मानव-निर्माण अभियान की आवश्यकता के रूप में सामने आता है। यदि हर मनुष्य अपने भीतर सत्य का अनुशीलन, कल्याणकारी कर्मों की साधना, और करुणा के सौंदर्य का पोषण करे — तो न केवल भारत, बल्कि समस्त विश्व को एक नई मानवतावादी दिशा दी जा सकती है।
अतः “सत्यम शिवम् सुंदरम्” की यह मानवकेंद्रित उजास लक्ष्य–2047 की आत्मा बन सकती है — एक ऐसा मार्गदर्शक जो भारत को सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित व अखंड राष्ट्र के रूप में पुनर्परिभाषित करे। यही सच्चा और सुंदर, एक राष्ट्र और श्रेष्ठ राष्ट्र, विकसित और अखंड भारत होगा — सत्यमय, शिवमय और करुणामय। इसलिए, हमें इस सूत्र को अपने जीवन का ध्येय-वाक्य बनाना होगा —”सत्य बनो, कल्याण करो, करुणा फैलाओ — यही है सत्यम शिवम् सुंदरम् की त्रिविध रोशनी!”
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा