लेख

जनहित की त्रिमूर्ति: शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर सरकारी नियंत्रण ही विकसित, समृद्ध और अखंड भारत की आधारशिला

डॉ प्रमोद कुमार

विकसित भारत का निर्माण केवल आर्थिक प्रगति या तकनीकी नवाचार से संभव नहीं, बल्कि एक ऐसे समावेशी समाज की संरचना से संभव है जहाँ प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन, समान अवसर और बुनियादी सुविधाएँ सुलभ हों। इस दृष्टि से शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा – ये तीन स्तंभ जनहित की त्रिमूर्ति के रूप में स्थापित होते हैं, जो किसी भी लोकतांत्रिक और मानवोन्मुखी राष्ट्र की नींव को मजबूत करते हैं। इन क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण न केवल सामाजिक न्याय की गारंटी देता है, बल्कि संसाधनों के समान वितरण, जवाबदेही, पारदर्शिता और सेवा भावना को भी सुनिश्चित करता है।

विकसित, समृद्ध और अखंड भारत की परिकल्पना केवल आर्थिक विकास, सैन्य ताकत या शहरीकरण से पूरी नहीं हो सकती। यह परिकल्पना तभी साकार हो सकती है जब प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं तथा सुरक्षा की गारंटी मिले। यह तभी संभव है जब इन तीनों बुनियादी स्तंभों — शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा — की कमान पूर्ण रूप से राज्य के हाथ में हो। निजी स्वामित्व आधारित प्रणाली जनहित की बजाय मुनाफाखोरी पर केंद्रित होती है, जिससे सामाजिक विषमता और असमानता बढ़ती है। अतः एक समावेशी, समानतामूलक और मानवमूल्य आधारित राष्ट्र के निर्माण हेतु आवश्यक है कि इन सेवाओं का नियंत्रण और संचालन पूरी तरह राज्य द्वारा किया जाए।

शिक्षा समाज की चेतना है, स्वास्थ्य उसका जीवन-स्रोत और सुरक्षा उसका आत्मविश्वास। यदि इन तीनों की बागडोर केवल निजी हाथों में सौंपी जाए, तो यह लाभ केंद्रित व्यवस्था बन जाती है, जिसमें वंचित वर्गों की उपेक्षा होती है। जबकि सरकार का दायित्व होता है कि वह हर नागरिक को बिना भेदभाव इन सुविधाओं तक पहुँच दिलाए। आज जब भारत ‘विकसित भारत@2047’ की संकल्पना को साकार करने की दिशा में अग्रसर है, तब यह अत्यंत आवश्यक है कि यह त्रिमूर्ति केवल नीतियों में नहीं, बल्कि व्यावहारिक धरातल पर क्रियाशील हो – और उसका नेतृत्व राज्य स्वयं करे।

इस प्रस्तावना में हम इसी विचार को केंद्र में रखते हुए यह विश्लेषण करेंगे कि कैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर सरकारी नियंत्रण ही समतामूलक, सुरक्षित और स्वस्थ भारत की आधारशिला है। विकसित भारत का सपना तभी साकार हो सकता है जब प्रत्येक नागरिक को समान अवसर, समुचित संसाधन और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की गारंटी प्राप्त हो। इन आवश्यकताओं में सबसे महत्वपूर्ण हैं – शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा, जिन्हें जनहित की त्रिमूर्ति कहा जा सकता है। यदि इन तीनों स्तंभों पर सरकार का नियंत्रण प्रभावी, उत्तरदायी और कल्याणकारी दृष्टिकोण से हो, तभी भारत की विकास यात्रा समावेशी, न्यायोचित और स्थायी बन सकती है। यह लेख इसी परिप्रेक्ष्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर सरकारी नियंत्रण की अनिवार्यता और उसके प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण करता है।

1. शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण: समता और सशक्तिकरण का आधार

1.1 ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय शिक्षा व्यवस्था वैदिक काल से लेकर गुरुकुल, मदरसे, ब्रिटिश मैकाले व्यवस्था और वर्तमान नवउदारवादी नीतियों के दौर से गुजरी है। पहले शिक्षा समाज का अधिकार थी, लेकिन उपनिवेशवाद और निजीकरण ने इसे विशिष्ट वर्गों की संपत्ति बना दिया।

1.2 शिक्षा का निजीकरण: समस्याएं

शिक्षा का बाज़ारीकरण: शिक्षा को एक सेवा नहीं बल्कि उत्पाद बना दिया गया है।

असमानता में वृद्धि: उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा महंगी और गरीब वर्ग की पहुंच से बाहर है।

शिक्षा में उद्देश्यहीनता: रोजगारोन्मुखी और नागरिक जिम्मेदारी आधारित शिक्षा की जगह केवल डिग्री आधारित प्रतिस्पर्धा।

1.3 सरकारी नियंत्रण के लाभ

सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों का विस्तार: सरकारी स्कूल और विश्वविद्यालय समावेशीता को बढ़ावा देते हैं।

निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा: 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा का संवैधानिक अधिकार।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या और मूल्य शिक्षा: समान नागरिकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सामाजिक समरसता की नींव।

1.4 आवश्यक सुधार

शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण पर ध्यान।

पाठ्यक्रम को सामाजिक संवेदनशीलता के साथ अद्यतन करना।

सरकारी बजट में शिक्षा पर GDP का न्यूनतम 6% व्यय।

2. स्वास्थ्य पर सरकारी नियंत्रण: समग्र मानव विकास का मूलाधार

2.1 सार्वजनिक स्वास्थ्य का महत्व

स्वास्थ्य न केवल एक व्यक्तिगत मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय उत्पादन की क्षमता से जुड़ा है। निजी स्वास्थ्य सेवाएं भारत में महंगी और असमान पहुंच वाली हैं।

2.2 भारत की स्वास्थ्य प्रणाली: चुनौतियां

निजीकरण और कॉरपोरेट हस्तक्षेप: गरीबों की पहुंच नहीं।

स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की सीमाएं: आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ सीमित और अस्पष्ट।

स्वास्थ्य सुविधाओं का ग्रामीण-शहरी विभाजन।

2.3 सरकारी नियंत्रण: आवश्यक उपाय

सरकारी अस्पतालों का आधुनिकीकरण।

जनस्वास्थ्य अभियानों (टीकाकरण, पोषण मिशन, TB मुक्त भारत) में निवेश।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का सशक्तीकरण।

2.4 सरकारी स्वास्थ्य नीति की प्रमुख उपलब्धियां

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और जननी सुरक्षा योजना।

कोविड-19 के समय टीकाकरण का उत्कृष्ट उदाहरण।

AIIMS, ESIC, CGHS जैसी संस्थाओं की भूमिका।

3. सुरक्षा पर सरकारी नियंत्रण: शांतिपूर्ण समाज की गारंटी

3.1 सुरक्षा का व्यापक अर्थ

सुरक्षा केवल आंतरिक और बाह्य सुरक्षा नहीं है, बल्कि यह नागरिकों की मानव सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा और न्यायिक सुरक्षा से भी जुड़ी है।

3.2 निजी सुरक्षा सेवाओं की सीमाएं

केवल संपन्न वर्गों तक सीमित।

प्रशिक्षण की गुणवत्ता और जवाबदेही का अभाव।

राष्ट्रहित और नागरिकता की भावना का अभाव।

3.3 सरकारी सुरक्षा ढांचे की उपयोगिता

पुलिस और अर्धसैनिक बलों की जवाबदेही।

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, BSF, CISF, CRPF जैसी एजेंसियां।

न्यायिक सुरक्षा तंत्र: RTI, NHRC, SC/ST आयोग।

3.4 न्याय प्रणाली और राज्य

नागरिक स्वतंत्रता, महिला सुरक्षा, दलित उत्पीड़न आदि पर राज्य की दायित्वपूर्ण भूमिका।

कानून निर्माण, कार्यान्वयन और निगरानी में पारदर्शिता।

4. त्रिमूर्ति के आपसी संबंध: समग्र विकास का ताना-बाना

क्षेत्र आपसी प्रभाव

शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षित समाज अधिक स्वास्थ्य के प्रति सजग होता है
स्वास्थ्य और सुरक्षा स्वस्थ नागरिक अपराधों से दूर रहते हैं
सुरक्षा और शिक्षा सुरक्षित वातावरण में शिक्षा सुचारू रूप से संभव होती है

सरकारी नियंत्रण में इन तीनों क्षेत्रों के समन्वय से न केवल मानव पूंजी का विकास होता है बल्कि सामाजिक न्याय, शांति और समरसता का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

5. नवउदारवाद और निजीकरण बनाम सरकारी नियंत्रण

5.1 नवउदारवादी नीतियां

1991 के बाद भारत में आर्थिक उदारीकरण के चलते शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा में निजी कंपनियों की घुसपैठ बढ़ी।

परिणामस्वरूप गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों की पहुंच सीमित हुई।

5.2 जनहित का ह्रास

चिकित्सा और शिक्षा उद्योग बन गए।

सुरक्षा का निजीकरण सत्तावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है।

5.3 समाधान

निजी क्षेत्र को केवल सहयोगी की भूमिका दी जाए, संचालक की नहीं।

सरकारी योजनाओं में भागीदारी हो, पर अधिकार सरकार के पास रहें।

6. अंतरराष्ट्रीय अनुभव: भारत क्या सीख सकता है

देश नियंत्रण का मॉडल शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा

फिनलैंड पूर्ण सरकारी नियंत्रण उत्कृष्ट विश्व स्तरीय सुरक्षित
क्यूबा राज्य आधारित स्वास्थ्य सीमित संसाधनों में बेहतरीन परिणाम उन्नत शांतिपूर्ण
अमेरिका निजी मॉडल असमान महंगा निजी सुरक्षा कंपनियों की भरमार

भारत को इन अनुभवों से सीखते हुए समावेशी सरकारी नियंत्रण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

7. संवैधानिक परिप्रेक्ष्य: जनहित की त्रिमूर्ति और राज्य का उत्तरदायित्व

7.1 भारतीय संविधान में प्रावधान

अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद 21-A: निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा।

अनुच्छेद 47: राज्य का दायित्व – पोषण और स्वास्थ्य।

अनुच्छेद 38, 39, 41: सामाजिक न्याय के लक्ष्य।

7.2 राज्य की भूमिका

भारतीय संविधान एक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना करता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा नागरिक का अधिकार और राज्य की जिम्मेदारी है।

8. वर्तमान चुनौतियां और समाधान

चुनौती समाधान

बजटीय कटौती शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाया जाए
भ्रष्टाचार और लापरवाही जवाबदेही तंत्र मजबूत किया जाए
निजीकरण की लहर सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत और आधुनिक बनाया जाए
सामाजिक विषमता वंचित वर्गों को प्राथमिकता दी जाए

9. विकसित भारत लक्ष्य-2047: त्रिमूर्ति की भूमिका

भारत के स्वतंत्रता के 100 वर्षों के उपलक्ष्य में ‘विकसित भारत @2047’ का लक्ष्य तभी संभव है जब:

प्रत्येक बच्चा स्कूल जाए, बिना भेदभाव के।

हर व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण इलाज बिना खर्च के मिले।

हर नागरिक सुरक्षित महसूस करे – घर, गली, समाज और देश में।

इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए त्रिमूर्ति पर सरकारी नियंत्रण आवश्यक नहीं, अनिवार्य है।

10. निष्कर्ष: सरकारी नियंत्रण के बिना नहीं बन सकता विकसित भारत

भारत जैसे विविधतापूर्ण, विशाल और लोकतांत्रिक राष्ट्र के विकास का मार्ग जनसामान्य की सहभागिता, सशक्तिकरण और समावेश से होकर गुजरता है। ऐसे में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा – ये तीनों क्षेत्र केवल सेवाएं नहीं, बल्कि नागरिक अधिकार हैं। यदि इन पर सरकार का पूर्ण और उत्तरदायी नियंत्रण हो, तभी भारत की विकास यात्रा न्यायोचित, टिकाऊ और मानवीय दिशा में आगे बढ़ सकती है। निजीकरण की लहर ने इन मूलभूत क्षेत्रों को लाभ आधारित उपक्रम बना दिया है, जिससे आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय विषमता और गहरी होती जा रही है।

शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री नहीं, बल्कि नागरिकता बोध, वैज्ञानिक चेतना और सामाजिक संवेदनशीलता का विकास है। इसी प्रकार स्वास्थ्य केवल बीमारियों का इलाज नहीं, बल्कि सार्वजनिक कल्याण की नींव है। और सुरक्षा का अर्थ केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि समाज में प्रत्येक नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा करना है। यदि इन तीनों क्षेत्रों पर सरकार का प्रभावी नियंत्रण हो, तो संसाधनों का समान वितरण, पारदर्शिता, जवाबदेही और सेवा भाव स्वतः सुनिश्चित हो जाता है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा न केवल एक नागरिक के मूल अधिकार हैं बल्कि वे देश के विकास की दिशा और दशा तय करते हैं। इन क्षेत्रों का निजीकरण केवल लाभ का मार्ग खोलता है, जबकि सरकारी नियंत्रण समता, न्याय और करुणा की राह। एक विकसित भारत की बुनियाद तभी मज़बूत हो सकती है जब राज्य अपनी भूमिका को निष्पक्षता, पारदर्शिता और जनसेवा की भावना से निभाए। अतः ‘जनहित की त्रिमूर्ति’ पर राज्य का नियंत्रण, भारत की लोकतांत्रिक आत्मा, संवैधानिक दर्शन और विकास की गति – तीनों का आधार है।

‘विकसित भारत लक्ष्य – 2047’ की कल्पना तभी साकार हो सकती है जब हम शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे आधारभूत क्षेत्रों को निजी लाभ की बजाय जनहित और राष्ट्रहित के परिप्रेक्ष्य में पुनः स्थापित करें। इस त्रिमूर्ति पर मजबूत सरकारी नियंत्रण ही वह सेतु है, जो भारत को सशक्त, समावेशी, समतामूलक और न्यायपूर्ण समाज की ओर अग्रसर कर सकता है। यही सच्चे अर्थों में विकसित भारत की वास्तविक आधारशिला होगी।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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