आगराजनता की आवाज़

आगरा के जगनेर सीएचसी में ‘ज़मीन पर इलाज’, सवालों के घेरे में स्वास्थ्य व्यवस्था!

आगरा। क्या हमारे सरकारी अस्पताल सिर्फ कागज़ों पर ही सेहतमंद हैं? आगरा के जगनेर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से आई एक ताज़ा तस्वीर और वीडियो इस सवाल को और गहरा कर देती है. यह कोई पहला मामला नहीं, जब इस अस्पताल ने इंसानियत और व्यवस्था दोनों को शर्मसार किया हो. ज़मीन पर लेटी एक घायल महिला, हाथों में पट्टियां बंधी– यह दृश्य किसी युद्धग्रस्त इलाके का नहीं, बल्कि ‘नए भारत’ के एक सरकारी अस्पताल का है, जहां इलाज तो मिल गया, पर बिस्तर की सुविधा नहीं!

बिस्तर नहीं, तो ज़मीन ही सही: जगनेर सीएचसी का ‘नया प्रोटोकॉल’?
वायरल वीडियो जगनेर के सीएचसी का है. अस्पताल के वार्ड के दरवाज़े पर एक महिला ज़मीन पर बेसुध लेटी है. उसके दोनों हाथों में पट्टियां बंधी हैं. बताया जा रहा है कि चोट लगने के बाद उसे अस्पताल लाया गया था. पट्टी तो बांध दी गई, लेकिन ज़मीन पर लेटी इस महिला को एक अदद बेड भी नसीब नहीं हुआ. घर जाने की स्थिति में न होने पर मजबूरन उसे ज़मीन पर ही लेटना पड़ा. उसके परिजन गिड़गिड़ाते रहे, मिन्नतें करते रहे, लेकिन अस्पताल प्रशासन को शायद यह सब सुनाई नहीं दिया. क्या सरकारी अस्पतालों में अब यही नया प्रोटोकॉल है? पट्टी बांध दो, पर बिस्तर की उम्मीद मत करो?

‘लापरवाही’ नहीं, ‘व्यवस्थागत हत्याएं’
स्थानीय लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर है. उनका कहना है कि जगनेर सीएचसी में लापरवाही का यह पहला मामला नहीं है. 8 जून को भी इसी अस्पताल की कथित लापरवाही ने एक पांच साल के बच्चे की जान ले ली थी. यह सिर्फ ‘लापरवाही’ नहीं है, यह ‘व्यवस्थागत हत्याएं’ हैं, जहां सरकारी उदासीनता और डॉक्टरों-कर्मचारियों की बेपरवाही मासूमों की जान ले रही है और घायलों को ज़मीन पर पटक रही है.
सवाल यह उठता है कि क्या सीएचसी के अधीक्षक और कर्मचारी सिर्फ अपनी तनख्वाह लेने के लिए बैठे हैं? क्या उन्हें मरीज़ों की पीड़ा से कोई फ़र्क नहीं पड़ता? क्या सरकार का ‘सबका स्वास्थ्य, सबको स्वास्थ्य’ का नारा सिर्फ चुनावी जुमला है, जो चुनाव खत्म होते ही हवा हो जाता है?

कब जागेगी व्यवस्था?
जगनेर सीएचसी जैसी तस्वीरें और घटनाएं सिर्फ एक अस्पताल की कहानी नहीं हैं, यह पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का स्याह सच है. जहां एक तरफ बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ ज़मीन पर लोग इलाज के लिए तड़पते हैं और बिस्तर के अभाव में ज़मीन पर पड़े रहते हैं. क्या सरकार और स्वास्थ्य विभाग को यह तस्वीरें विचलित नहीं करतीं? या उन्हें लगता है कि यह सब ‘चलता रहता है’? जब तक इन सवालों का ईमानदारी से जवाब नहीं मिलेगा, तब तक जगनेर जैसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी और हमारा स्वास्थ्य तंत्र इसी तरह बीमार और बेसुध पड़ा रहेगा.

क्या आपको लगता है कि इस तरह की घटनाओं के लिए सिर्फ स्थानीय अस्पताल प्रशासन ही ज़िम्मेदार है, या यह कहीं बड़े सिस्टम की नाकामी का हिस्सा है?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button