लेख

“आधुनिकता की आड़ में अनैतिकता: सिनेपलेस (कैबिन सिनेमा), कैबिन रेस्टोरेंट, हुक्काबार और गली-मोहल्लों में पनपते जिस्मफरोशी के अड्डे समाज व संस्कृति के विनाशक”

डॉ प्रमोद कुमार

आज का भारतीय समाज तीव्रता से आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रहा है, लेकिन इस प्रगति की आड़ में एक गंभीर नैतिक संकट जन्म ले चुका है। सिनेपलेस (कैबिन सिनेमा), कैबिन रेस्टोरेंट, हुक्काबार और गली-मोहल्लों में तेजी से खुलते मिनी-सिनेमा जैसे प्रतिष्ठान, जो बाहरी तौर पर मनोरंजन और सामाजिक मेल-जोल के केंद्र प्रतीत होते हैं, असल में अनेक स्थानों पर आधुनिक जिस्मफरोशी के अड्डों में बदलते जा रहे हैं। इन अड्डों की सबसे अधिक शिकार बन रही हैं हमारी स्कूली और कॉलेज की बहन-बेटियाँ, जिन्हें बहला-फुसलाकर, नशे और आकर्षक झूठे वादों से जाल में फँसाया जा रहा है। यह घिनौनी साजिश न केवल नारी गरिमा को ठेस पहुँचाती है, बल्कि सम्पूर्ण सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करती है। बच्चों और युवाओं का ध्यान पढ़ाई से भटककर इन अड्डों की ओर जा रहा है, जिससे एक नैतिक पतन की पीढ़ी तैयार हो रही है। सामाजिक मूल्य, पारिवारिक मर्यादा और सांस्कृतिक आदर्श इन गतिविधियों से संकट में पड़ गए हैं।

समाज आज जिस दिशा में अग्रसर हो रहा है, वह केवल तकनीकी या भौतिक प्रगति नहीं है, बल्कि नैतिक पतन की ओर भी एक चिंताजनक यात्रा बनती जा रही है। भारतीय समाज, जिसकी संस्कृति और सभ्यता विश्व में अपनी सादगी, उच्च आदर्शों और नारी-सम्मान के लिए प्रसिद्ध रही है, आज आधुनिकता और मनोरंजन के नाम पर ऐसे गिरोहों के चंगुल में फंसता जा रहा है, जो ‘सिनेपलेस (कैबिन सिनेमा)’ ‘कैबिन रेस्टोरेंट’, ‘हुक्काबार’ और ‘छोटे सिनेमा घरों’ की आड़ में युवा पीढ़ी, विशेषकर स्कूल-कॉलेज की लड़कियों को अपना निशाना बना रहे हैं। यह आवश्यक हो गया है कि सरकार ऐसे स्थलों पर कड़ी निगरानी रखे, इनके संचालन पर प्रतिबंध लगाए और इनके मालिकों व संरक्षकों पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित करे। साथ ही समाज को भी सजग होकर इन अड्डों के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी, ताकि हमारी बहन-बेटियाँ सुरक्षित रहें और भारत की संस्कृति, मर्यादा और नैतिकता अक्षुण्ण बनी रहे।

1. आधुनिक व्यवसाय की आड़ में अनैतिक धंधे

आजकल महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक गली-गली में ऐसे स्थान खुल रहे हैं जिन्हें बाहर से देखने पर सामान्य रेस्टोरेंट, कैफे, हुक्काबार या मिनी-थिएटर समझा जाता है, परंतु इनके भीतर की हकीकत बेहद खतरनाक और चिंताजनक है। यहाँ शराब, नशा, हुक्का और सेक्सुअल व्यापार का नंगा नाच होता है, जो कानून, संस्कृति और नैतिकता के हर दायरे को ध्वस्त करता है।

2. युवा पीढ़ी पर घातक प्रभाव

स्कूल और कॉलेज के बच्चे, विशेषकर किशोर और किशोरियां, जो भविष्य के कर्णधार होते हैं, इन अड्डों का सबसे आसान शिकार बन रहे हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर बहलाकर, उन्हें मुफ्त पास, आकर्षक ऑफर या ‘फ्रेंड्स पार्टी’ के नाम पर इन स्थानों तक लाया जाता है। एक बार यहाँ की चकाचौंध में फँस जाने के बाद, यह लड़कियाँ इन संस्थानों के लिए ‘संपत्ति’ बन जाती हैं और मजबूरी, धमकी, ब्लैकमेलिंग व ड्रग्स के जरिए उनका इस्तेमाल किया जाता है।

3. परिवार और समाज में टूटन

इन अड्डों के कारण परिवारों में विश्वास टूट रहा है। माता-पिता को जब यह ज्ञात होता है कि उनकी संतानें स्कूल या कॉलेज की आड़ में अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हैं, तो वह केवल सामाजिक शर्म का कारण नहीं बनता बल्कि मानसिक और भावनात्मक पीड़ा का स्रोत भी होता है। यह धीरे-धीरे परिवारों को तोड़ देता है और समाज में असंतुलन फैलाता है।

4. सरकार और प्रशासन की उदासीनता

दुर्भाग्य की बात यह है कि अधिकांश मामलों में प्रशासन और पुलिस इन गतिविधियों को जानते हुए भी या तो अनदेखा कर देते हैं या भ्रष्टाचार की वजह से चुप रहते हैं। कई बार यह अड्डे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करते हैं या पुलिस और नगर निगम कर्मियों को महीना देकर अपने कार्य में लगे रहते हैं। यही कारण है कि यह अड्डे दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।

5. नारी गरिमा और सुरक्षा पर संकट

भारत जैसे देश में जहाँ ‘नारी तू नारायणी’ का आदर्श रहा है, वहाँ आज की स्थिति इतनी विकृत हो गई है कि लड़कियों को इनके जाल में फँसाकर जबरन जिस्मफरोशी की दलदल में झोंक दिया जा रहा है। कई बार लड़कियाँ मजबूरीवश या ब्लैकमेलिंग के चलते कुछ भी कहने से डरती हैं, जिससे यह व्यापार और अधिक फलता-फूलता है।

6. सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास

भारतीय संस्कृति में संयम, अनुशासन, पारिवारिक मूल्य और नैतिकता की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लेकिन जब संस्कृति का स्थान वासना ले ले, जब शिक्षालयों का स्थान हुक्काबार ले ले, और जब माता-पिता की शिक्षा का स्थान सोशल मीडिया की विकृति ले ले, तो समझिए कि समाज गर्त में जा रहा है

7. युवतियों को बहलाने-फुसलाने के षड्यंत्र

ये अड्डे बहन-बेटियों को बहलाने के लिए कई तरकीबें अपनाते हैं – मॉडलिंग ऑफर, इंस्टाग्राम प्रमोशन, पार्टी इनवाइट, और कभी-कभी तो तथाकथित ‘लव अफेयर’ के माध्यम से भी उन्हें फँसाया जाता है। कई बार लड़कियाँ या उनके परिजन तब जागते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है।

8. कानूनी पहलू और आवश्यकता

भारत में अनैतिक व्यापार (जिस्मफरोशी) को रोकने के लिए “Immoral Traffic (Prevention) Act” (PITA) जैसे सख्त कानून हैं। लेकिन इनका सख्ती से पालन नहीं किया जाता। जब तक ऐसे अड्डों पर रेड डालकर उन्हें बंद नहीं किया जाएगा, जब तक वहाँ के मालिकों और संरक्षकों को जेल नहीं भेजा जाएगा, तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है।

9. समाज का नैतिक कर्तव्य

केवल सरकार ही नहीं, समाज को भी इस दिशा में जागरूक होने की आवश्यकता है। माता-पिता को बच्चों पर ध्यान देना होगा, शिक्षकों को स्कूल-कॉलेज में नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी, समाज को इन अड्डों की पहचान कर पुलिस और मीडिया के माध्यम से उजागर करना होगा।

10. सोशल मीडिया का काला सच

सोशल मीडिया और ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स इन अड्डों के सबसे बड़े माध्यम बन चुके हैं। यहाँ से लड़कियों को इन स्थानों तक बुलाया जाता है। ‘इन्फ्लुएंसर’ या ‘बोल्ड कंटेंट क्रिएटर’ जैसे नामों के पीछे कई बार ऐसे गिरोह काम करते हैं जो इन अड्डों के लिए मानव संसाधन जुटाते हैं।

11. बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव

जब बच्चे पढ़ाई की जगह इन अड्डों में समय बिताने लगते हैं, तो उनकी शिक्षा चौपट हो जाती है। ये स्थान उन्हें नशे, हिंसा, अपराध और लंपटता की ओर धकेलते हैं। परिणामस्वरूप एक दिशाहीन पीढ़ी तैयार होती है जो राष्ट्र के लिए भार बन जाती है।

12. कुछ वास्तविक घटनाएं (उदाहरण)

दिल्ली में 2024 में पकड़ा गया एक हुक्काबार, जहाँ स्कूल गर्ल्स को ड्रग्स और शराब के जरिए फँसाकर जिस्मफरोशी कराई जा रही थी। मुंबई में 2023 में एक कैफे की आड़ में चल रही सेक्स रैकेट का पर्दाफाश हुआ, जिसमें कई कॉलेज छात्राएं शामिल थीं।

13. उपाय और सुझाव

1. स्थानीय निगरानी तंत्र का निर्माण – मोहल्ला समिति या आरडब्ल्यूए के माध्यम से संदिग्ध स्थानों की निगरानी।
2. पुलिस की विशेष टास्क फोर्स – जो हुक्काबार, अवैध सिनेमा हॉल्स और कैफे पर अचानक रेड करे।
3. शिक्षा में नैतिक शिक्षा और डिजिटल सेफ्टी – स्कूल स्तर पर डिजिटल सतर्कता की शिक्षा दी जाए।
4. सोशल मीडिया मॉनिटरिंग – सोशल मीडिया पर युवतियों को बहलाने वालों के खिलाफ FIR दर्ज की जाए।
5. जनता की भागीदारी – समाज को ऐसे अड्डों की पहचान करके, नाम उजागर करके, सार्वजनिक रूप से विरोध करना चाहिए।

14. कठोर दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता

1. इन अड्डों के मालिकों को सिर्फ जुर्माना नहीं, कम-से-कम 10 वर्षों की सजा दी जाए।
2. ऐसे संस्थानों का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
3. जो पुलिसकर्मी या नेता इनका संरक्षण करें, उन पर भी सख्त कानूनी कार्रवाई हो।
4. सोशल मीडिया पर इनका प्रचार करने वालों को भी कठोर सजा मिले।

15. सरकार से अपेक्षित कार्यवाही

1. राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाए, जैसा ‘स्वच्छ भारत मिशन’ था।
2. सांस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान – जिसमें भारतीय मूल्यों और नारी-सम्मान पर जागरूकता फैलाई जाए।
3. साइबर सेल को सशक्त बनाया जाए – ताकि ऑनलाइन फँसाने वालों पर कार्रवाई हो सके।

सरकार व समाज को मिलकर कार्य करने का समय आ गया है। समाज को गर्त से निकालने के लिए केवल नीतियों की नहीं, नीयत की जरूरत होती है। ऐसे सिनेपलेस (कैबिन सिनेमा) हुक्काबार, कैबिन रेस्टोरेंट और सिनेमा हॉल, जो आधुनिकता की आड़ में अनैतिकता फैला रहे हैं, वे समाज के कैंसर बन चुके हैं। इनका समूल नाश करना अब सरकार, प्रशासन, समाज और हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है। यह लेख किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन असामाजिक तत्वों के विरुद्ध है जो हमारी बहन-बेटियों, संस्कृति और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम चुप न बैठें – आवाज़ उठाएं, कार्रवाई करें और इन अड्डों को हमेशा के लिए बंद कराएं। विकसित, समृद्ध, सशक्त व अखंड राष्ट्र निर्माण हेतु समाज के अनैतिक कार्यों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई करने की अतिअवश्यकता है इसमें सरकार व समाज दोनो को बदचढ़कर हिस्सा लेने की जरूरत है। जय हिन्द जय भारत।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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