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“विकसित भारत की नैतिक रूपरेखा: सत्यम (मानव), शिवम् (कर्तव्य), सुंदरम् (करुणा व मानवता) त्रिवेणी सिद्धांत की अवधारणा का आधुनिक महत्व व प्रासंगिकता”

डॉ प्रमोद कुमार

भारत एक विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। आर्थिक, तकनीकी और बौद्धिक उन्नति के साथ भारत यदि अपने मूल सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को आत्मसात नहीं करता, तो यह प्रगति अधूरी और खोखली होगी। भारत 21वीं सदी में विकास के अनेक आयामों पर अग्रसर है। आर्थिक प्रगति, तकनीकी नवाचार, वैश्विक मंच पर प्रभावशाली उपस्थिति। परंतु यह प्रगति तब तक अधूरी है, जब तक उसमें नैतिक मूल्य न समाहित हों। भारत का नवनिर्माण केवल अवसंरचना, उद्योग या रक्षा क्षेत्र में नहीं, बल्कि व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की मूल आत्मा के पुनर्जागरण में है। इस संदर्भ में “सत्यम, शिवम्, सुंदरम्” केवल दार्शनिक सूत्र नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की पुनर्रचना के नैतिक दिशासूचक हैं। इस संदर्भ में “सत्यम, शिवम्, सुंदरम्” का त्रिवेणी सिद्धांत केवल दर्शन नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण की नैतिक रीढ़ बन सकता है। इसमें “सत्यम” का तात्पर्य है मानव के रूप में सत्य को जीना, “शिवम्” का आशय है कर्तव्यनिष्ठा और कर्म की पवित्रता, जबकि “सुंदरम्” मानवीयता और करुणा की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

1. सत्यम (मानव): सत्य का मानव जीवन में स्थान
1.1 सत्य की परिभाषा और सांस्कृतिक विरासत

सत्य केवल भाषिक ईमानदारी नहीं, बल्कि विचार, आचरण और दृष्टिकोण की संपूर्ण सत्यनिष्ठता है। ऋग्वेद से लेकर गांधी व अम्बेडकर तक, सत्य भारतीय आत्मा की धुरी रहा है। सत्य भारत की आत्मा रहा है। सत्य मे ही विश्वास, न्याय और पारदर्शिता के बीज छिपे हैं।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में: लोकतंत्र की आत्मा है सत्यनिष्ठा। जब सरकारें पारदर्शी हों, निर्णय तथ्य आधारित हों, और संवाद ईमानदार हो तब ही नागरिक विश्वास करते हैं।
व्यक्तिगत जीवन में: सत्य केवल बोलने तक सीमित नहीं, बल्कि सोच, कार्य और व्यवहार में सत्यनिष्ठ होना आधुनिक नागरिक की पहचान है।
शिक्षा और मीडिया में: सत्य का संप्रेषण ही वास्तविक शिक्षा और पत्रकारिता का उद्देश्य होना चाहिए। विकास तभी सार्थक होगा, जब उसका आधार सत्य पर हो आंकड़ों की बाजीगरी या प्रचार की चकाचौंध पर नहीं।

1.2 आधुनिक भारत में सत्य का महत्व

आज जब राजनीति, मीडिया और सामाजिक संवाद में झूठ का प्रसार बढ़ रहा है, तो सत्य की आवश्यकता और भी अधिक हो जाती है। पारदर्शिता, सूचना का सत्य, और व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा ही एक स्वस्थ लोकतंत्र की नींव हैं।

1.3 सत्य और व्यक्ति निर्माण

सच्चा नागरिक वही होता है जो स्वयं सत्यनिष्ठ हो। बालकों को शिक्षा में सत्य की उपादेयता, युवा को करियर में नैतिकता और नेता को जनसेवा में पारदर्शिता अपनानी चाहिए।

2. शिवम् (कर्तव्य): नितकर्म की प्रतिष्ठा और राष्ट्रनिर्माण
2.1 ‘शिवम्’ का दार्शनिक व सांस्कृतिक अर्थ

‘शिव’ का अर्थ है कल्याणकारी, और ‘शिवम्’ का अभिप्राय है वह कर्म जो मानव कल्याण के लिए किया जाए। भारतीय संस्कृति में कर्म हमेशा सर्वोच्च रहा है। विशेषतः ऐसा कर्म जो निजहित से ऊपर उठकर लोककल्याण को साधे।

नागरिक का कर्तव्य: करों का भुगतान, कानून का पालन, वोट डालना, पर्यावरण-संरक्षण— ये सभी राष्ट्रनिर्माण के कर्तव्य हैं।

प्रशासन व नेतृत्व का कर्तव्य: जनता की सेवा, जवाबदेही, और सदाचार ही लोकतंत्र को जीवंत बनाते हैं। शिक्षक, डॉक्टर, पुलिस, किसान — हर वर्ग यदि अपने कर्तव्य को शिवस्वरूप मानकर निभाए, तो समरस, समृद्ध राष्ट्र अपने आप साकार हो उठेगा। कर्तव्यविमुख विकास केवल असमानता और भ्रष्टाचार को जन्म देता है। जबकि कर्तव्यनिष्ठ विकास समाज को सहअस्तित्व की ओर ले जाता है।

2.2 कर्तव्य और आधुनिक जीवन

आज कर्तव्य को अधिकारों की तुलना में गौण समझा जा रहा है। एक नागरिक, शिक्षक, डॉक्टर, नेता या छात्र – सभी के कर्तव्यों की स्पष्ट रूपरेखा होनी चाहिए।

2.3 कर्तव्य की उपेक्षा और सामाजिक संकट

कर्तव्यों की अवहेलना से समाज में अराजकता, भ्रष्ट्राचार और असंतुलन उत्पन्न होता है। इसीलिए ‘कर्तव्यपथ’ को भारत की नीति और राजनीति दोनों में केंद्र में रखना आवश्यक है।

3. सुंदरम् (करुणा व मानवता): सौंदर्य की नैतिक व्याख्या
3.1 सुंदरता की भारतीय परिभाषा

भारतीय दर्शन में सौंदर्य केवल बाह्य आकर्षण नहीं, बल्कि भावनात्मक करुणा, सहानुभूति और समर्पण है। यह आंतरिक सौंदर्य है जो मानवता को उत्कृष्ट बनाता है।

3.2 मानवीयता की आधुनिक चुनौतियाँ

आधुनिक युग में व्यक्तिगत स्वार्थ, उपभोक्तावाद, और आत्मकेंद्रिता ने करुणा को हाशिये पर धकेल दिया है। वृद्धाश्रम, बालश्रम, जातिगत घृणा, लैंगिक भेदभाव—ये सभी अमानवीयता के प्रतीक हैं।

3.3 सुंदरम् के माध्यम से सामाजिक पुनरुत्थान

‘सुंदरम्’ का अर्थ है वह जीवन जो दूसरों के लिए प्रेरणा हो, जो दया, ममता और समरसता से भरा हो। नारी सम्मान, पर्यावरण संरक्षण और गरीबों की सेवा—ये सुंदरम् की आधुनिक परिभाषा हो सकती हैं।

3.4 संवेदनशीलता से ही सुंदर बनता है राष्ट्र

“सुंदरम्” केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि वह चेतना है जो मानव को मानव बनाती है — करुणा, सहानुभूति, प्रेम और संवेदना।

विकास में मानवीयता: यदि विकास से कुछ वर्गों को ही लाभ मिले और शेष बहिष्कृत हों, तो वह विकास नहीं — विषमता है। समावेशी विकास ही सुंदरम् है।
स्त्री, दलित, गरीब, दिव्यांग — इनकी गरिमा और अधिकारों की रक्षा कर ही राष्ट्र सुंदर बन सकता है।
शहरीकरण बनाम सामाजिक तानाबाना: स्मार्ट सिटी के साथ “स्मार्ट सोसायटी” भी जरूरी है, जहाँ मानवीय संबंध, सहयोग और सामूहिकता बनी रहे। “सुंदरम्” वह जीवन है जहाँ दूसरों की पीड़ा देखकर आंखें नम होती हैं और हाथ सेवा को आगे बढ़ते हैं।

4. त्रिवेणी सिद्धांत की अंतःसंबद्धता

“सत्यम”, “शिवम्”, “सुंदरम्” अलग-अलग मार्ग नहीं, बल्कि एक ही नदी की तीन धाराएं हैं। सत्य बिना कर्तव्य दिशाहीन हो जाता है, क्योंकि उसकी प्रेरणा नहीं होती। कर्तव्य बिना करुणा कठोर हो जाती है, और यंत्रवत व्यवहार को जन्म देती है। करुणा बिना सत्य क्रूर बन सकता है, और कर्तव्य स्वार्थी। इन तीनों का समन्वय ही नैतिक विकास, समावेशी समाज, और सदाचारयुक्त शासन की गारंटी देता है।

4.1 सत्य, कर्तव्य और करुणा का संबंध

सत्य के बिना कर्तव्य दिशाहीन होता है, और करुणा के बिना सत्य कठोर बन जाता है। इसी प्रकार, यदि कर्तव्य में सत्य और करुणा न हो, तो वह शोषण का माध्यम बन सकता है। यह त्रिवेणी सिद्धांत एक-दूसरे के पूरक हैं।

4.2 भारत के संविधान में त्रिवेणी तत्व

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित “न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व” इन्हीं तत्वों की संवैधानिक व्याख्या है। बंधुत्व ‘सुंदरम्’ है, समता ‘शिवम्’ और स्वतंत्रता ‘सत्यम’।

5. विकसित भारत की संकल्पना में त्रिवेणी सिद्धांत की भूमिका
5.1 आर्थिक प्रगति बनाम नैतिक अधोगति

GDP बढ़ना, टेक्नोलॉजी में अग्रणी होना या अंतरिक्ष में पहुंचना तभी सार्थक है जब समाज नैतिक रूप से भी समृद्ध हो। सत्यम-शिवम्-सुंदरम् इस संतुलन की कुंजी है।

5.2 शिक्षा और संस्कार के माध्यम से मूल्य निर्माण

विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और परिवारों को इस त्रिवेणी सिद्धांत को जीवनशैली का अंग बनाना होगा। केवल पाठ्यक्रम नहीं, बल्कि आम व्यवहार में भी इसका समावेश ज़रूरी है।

5.3 नीतिनिर्माण में नैतिकता का समावेश

नीति-निर्माण (Policy Making) में केवल लाभ, हानि, आंकड़े या वैश्विक प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

6. त्रिवेणी सिद्धांत और वैश्विक दृष्टिकोण
6.1 वैश्विक संकट और भारतीय उत्तर

जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, युद्ध, गरीबी और असमानता से जूझ रही है, तब सत्यम-शिवम्-सुंदरम् एक विश्व नैतिक सिद्धांत बन सकता है।

6.2 गांधी, विवेकानंद और डॉ. आंबेडकर की दृष्टि

महात्मा गांधी का “सत्याग्रह”, विवेकानंद का “उठो, जागो और लक्ष्य तक पहुँचो” तथा आंबेडकर का “शिक्षित बनो, संगठित होओ, संघर्ष करो” — ये सभी इसी त्रिवेणी तत्त्व की आधुनिक व्याख्याएं हैं।

7. चुनौतियाँ और समाधान
7.1 भौतिकतावाद और मूल्यविहीनता

उपभोक्तावाद और प्रतिस्पर्धा ने इन मूल्यों को चुनौती दी है। मानसिक स्वास्थ्य संकट, पारिवारिक विघटन और सामाजिक असहिष्णुता इसके उदाहरण हैं।

7.2 समाधान की राह: मूल्यों की पुनर्स्थापना

– नीति-शिक्षा का सुदृढ़ीकरण
– मीडिया व सोशल मीडिया का मूल्यनिष्ठ उपयोग
– राजनीतिक नेतृत्व में नैतिक अनुकरणीयता
– समाज में सामूहिक जागरूकता अभियान

8. आधुनिक भारत में इन मूल्यों की प्रासंगिकता
8.1 शिक्षा नीति में मूल्य-समावेशन

नई शिक्षा नीति (NEP-2020) में चरित्र निर्माण को केंद्र में लाना, इन त्रिविध मूल्यों की पुनर्स्थापना का अवसर है।

8.2 तकनीकी विकास में मानवीय दृष्टिकोण

AI, रोबोटिक्स, डेटा साइंस— इन तकनीकी विकासों को भी नैतिकता की दृष्टि से संचालित करने की आवश्यकता है।

8.3 वैश्विक मंच पर भारत का नैतिक योगदान

जहाँ दुनिया युद्ध, जलवायु संकट और भौतिक लालसा से जूझ रही है, भारत ‘सत्यम-शिवम्-सुंदरम्’ के माध्यम से वैश्विक नैतिक नेतृत्व दे सकता है।

9. मूल्यों से युक्त विकास ही भारत का सच्चा नवनिर्माण

यदि भारत को केवल महाशक्ति बनना है, तो हथियार, धन और तकनीक पर्याप्त हैं।
लेकिन यदि भारत को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का वाहक बनना है — तो उसे सत्यम, शिवम्, सुंदरम् को जीवन में उतारना होगा।

10. नैतिक पुनरुत्थान ही विकसित भारत का पथ

‘विकसित भारत’ केवल आर्थिक विकास का नाम नहीं, बल्कि उस भारत की परिकल्पना है जहाँ हर नागरिक सत्यम (सत्यनिष्ठ मानव), शिवम् (कर्तव्यपरायण नागरिक), और सुंदरम् (करुणामय प्राणी) हो। जब समाज इन तीन तत्वों को जीना शुरू करेगा, तभी भारत वास्तव में विकसित कहलाएगा न केवल तकनीकी और भौतिक अर्थों में, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी। विकास और मूल्यों का यह संगम ही भारत के नवनिर्माण का महामार्ग है जहाँ राष्ट्र केवल तरक्की नहीं करता, बल्कि वह आत्मा से भी जाग्रत और उज्ज्वल होता है। तभी भारत एक विकसित, समृद्ध, सशक्त व अखंड राष्ट्र के रूप में उद्दीयमान रहेगा।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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